Gurudev Ranade; Life &Philosophy
Sunday, July 17, 2016
चालता चालता पंढरी वाट | पुण्य जोडली अनंत कोट ||धृ||
मग पावलीया पंढरीशी | अनंत कोटी पुण्य राशी ||१||
देता हरिनामाची हाक | महा पातकं घेती धाक ||२||
हाती वाजलिया टाळी | रंगी नाचतो तो वनमाळी ||३||
बोधला म्हणे आनंद झाला | विठोबा आपोआप आला ||४||
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