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दानेन पाणिर्न तु कंकणेन स्नानेन शुद्धिर्न तु चंदन...
अन्नाच्या परिमळें जरि जाय भूक । तरि कां हे पाक घ...
साँच बीना सुमिरण नहीं, बीन भेद न भक्ति होय। पारस ...
देवी बडी न देवता, सूरज बडा न चाँद। आदी अंत दोनों ...
पंडीत छोड़ो पाथरा(पाथर का देव), काजी छोड़ो कुराण। व...
भगवंताची स्मृति आणि कर्तव्याची जागृति. प्रत्येक म...
प्रारब्ध संचित विठ्ठलदैवत । कुळीं उगवत भाग्ययोगें...
तुझें वर्म ठावें । माझ्या पाडियेलें भावें ॥१॥ रू...
पक्षी अंगणी उतरती | ते का गुंतोनी राहती || तैसे ...
पांडुरंग कांती दिव्य तेज झळकती। रत्नकीळ फांकती प्...
प्रपंच रचना सर्वहि भोगूनि त्यागिली । अनुतापाचे ज्...
जें त्रैलोकीं नाहीं दान । तें करिती संतसज्जन । तय...
आवडीनें भावें हरिनाम घेसी । तुझी चिंता त्यासी सर्...
!! संत संग देई सदा !! लागोनियां पाया विनवितो तुम्...
प्रथम तुला वंदितो कृपाळा | गजानना गणराया || धृ ||...
प्रपंचातले सुखदुःख हे केवळ जाणिवेत आहे. प्रापंचि...
न पश्यति जन्मांध: कामान्धो नैव पश्यति। न पश्यति म...
नेहमी नामस्मरण केले असता सर्व काम आपोआप होते. देव...
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Sunday, March 27, 2016
तुझें वर्म ठावें । माझ्या पाडियेलें भावें ॥१॥
रूप कासवाचे परी । धरुनि राहेन अंतरीं ॥ध्रु.॥
नेदी होऊं तुटी । मेळवीन दृष्टादृष्टी ॥२॥
तुका म्हणे देवा । चिंतन ते तुझी सेवा ॥३॥
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