Thursday, April 14, 2016

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य के रूप में मिला हुआ यह जन्म एक लम्बे अवसर के बाद मिलता है अतः इसे व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए अपितु इस सुअवसर को जीव हित के लिए उपयोग करना चाहिए । यह अवसर हाथ से निकलने के पश्चात पुनः नहीं मिल सकता जिस प्रकार वृक्ष से झड़े हुए पत्ते उस पर पुनः नहीं जोड़े जा सकते ।
"नमन खमन और दीनता, सब को आदर भाव ।
कहैं कबीर सोई बडे, जा में बडो सुभाव ॥"

दुर्बल को न सताइये, जा की मोटी हाय ।
बिना जीव की श्वास से, लोह भसम हो जाय ॥
अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि शक्तिशाली व्यक्ति को कभी अपने बल के मद में चूर हो कर किसी दुर्बल पर अत्याचार नहीं करना चाहिए क्योंकि दुखी ह्रदय कि हाय बहुत ही हानिकारक होती है । जिस प्रकार लोहार कि चिमनी निर्जीव होते हुए भी लोहे को भस्म करने कि शक्ति रखती है ठीक उसी प्रकार दुःखी व्यक्ति कि बद्दुआओं से समस्त कुल का नाश हो जाता है ।

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