Monday, April 4, 2016

न देवो विद्यते काष्ठे न पाषाणे न मृण्मये।
भावे हि विद्यते देवस्तस्माद् भावो हि कारणम्।।
ईश्वर लकडी ,पत्थर और मिट्टी से निर्मित मुर्तियो मे नही है।
ईश्वर तो भाव मे ही विद्यमान है।जहा भावना करे वही प्रगट हो जाता है।

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